Wednesday, December 30, 2015

दुर्गा सप्तशती के 11 अचूक मंत्र, पूरी कर सकते हैं आपकी हर मनोकामना

तंत्र शास्त्र के अनुसार, किसी भी नवरात्रि में यदि दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप विधि-विधान से किया जाए तो साधक की हर परेशानी दूर हो सकती है। दुर्गा सप्तशती में हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है। ये मंत्र बहुत ही जल्दी असर दिखाते हैं, यदि आप मंत्रों का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से इन मंत्रों का जाप करवाएं, अन्यथा इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।

जानिए कैसे प्रकट हुईं महादुर्गा, किस देवता ने दिए उन्हें कौनसे अस्त्र-शस्त्र?

देवी भगवती ने असुरों का वध करने के लिए कई अवतार लिए। सर्वप्रथम महादुर्गा का अवतार लेकर देवी ने महिषासुर का वध किया था। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतार का स्पष्ट उल्लेख आता है, जिसके अनुसार-
एक बार महिषासुर नामक असुरों के राजा ने अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग छिन लिया। जब सारे देवता भगवान शंकर व विष्णु के पास सहायता के लिए गए। पूरी बात जानकर शंकर व विष्णु को क्रोध आया तब उनके तथा अन्य देवताओं से मुख से तेज प्रकट हुआ, जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया।

Sunday, December 27, 2015

जन्म दिवस पर विशेष क्या करें

अमूमन देखा जाता है कि सभी लोग जन्म दिन के दिन को त्यौहार कि तरह मानते हैं लेकिन सबसे जरुरी काम जो उनको करना चाहिए वो नहीं करते हैं । 
जन्म दिन के दिन हमारी जन्म कुंडली के ग्रहों के प्रभाव में भी बड़ा बदलाव आता है । जिसको हम वर्षफल कि गणना करके जान सकते हैं । 
हमारे बुजुर्ग प्रायः जन्म दिन के दिन नवग्रह पूजन करके ही शुरुआत किया करते थे । सामर्थ्य अनुसार नवग्रह पूजन के साथ हवं भी किया जाता था ।

Tuesday, December 22, 2015

सेम मुखेम – उत्तराखंड का पांचवां धाम!


भगवान श्री कृष्ण को हम कई रूपों में पूजते हैं उन्ही रूपों में से एक है भगवान नागराजा का रूप | उत्तराखंड की पावन धरती पर समय-समय पर कई देवी-देवताओं ने अवतार लिए हैं, यहाँ की सुन्दरता और पवित्रता पुराणों के युग से प्रसिद्ध है | इसी कड़ी में एक और कथा प्रचलित है जो कि भगवान श्री कृष्ण से जुडी हुई है और उत्तराखंड की सुन्दरता और पवित्रता का व्याख्यान करती है |

श्री कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम

कस्तूरीतिलकं ललाट पटले वक्षः स्थले कौस्तुभं ।
नासाग्रे वरमोक्तिकं करतले वेणुः करे कंकणम् ।।
सर्वाङ्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावली ।
गोपास्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूड़ामणिं ।। 

Sunday, December 20, 2015

शिव मानस पूजा


रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नाना रत्न विभूषितम्‌ मृग मदामोदांकितम्‌ चंदनम
जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम्‌ गृह्यताम्‌ 1

वेदसार शिवस्तवः


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
      गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
      महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ।।।।

लिङ्गाष्टक स्तोत्रम्‌


ब्रह्म मुरारि सुरार्चितलिङ्गं निर्म्मल भासित शोभित लिङ्गम्‌
जन्मज दु:ख विनाशक लिङ्गं तत्‌ प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 1

देवमुनि प्रवरार्च्चित लिङ्गं कामदहं करूणाकर लिङ्गम्
रावणदर्प विनाशन लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 2

शिव ताण्डव स्तोत्र


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
      गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
      चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी
      विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
      किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

रुद्राष्टकम्


नमामीशमीशान निर्वाणरूपम् । विभुम् व्यापकम् ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पनिरीह चिदाकाशमाकाशवासम् भजेऽह ॥१॥

निराकारमोङ्कारमूलम् तुरीयम् । गिराज्ञानगोतीतमीशम् गिरीशम् ।
करालमहाकाल कालकृपालं  गुणागारसंसारपारम् नतोऽहम् ॥२॥

आशीर्वचन


आयु द्रोणसुते श्रीयं दशरथे शत्रुक्षयं राघवे
ऐश्वर्यं नहुषे गतिश्च पवने मानञ्च दुर्योधने ।।
दानं सूर्यसुते बलं हलधरे सत्यं च कुन्तीसुते
विज्ञानं विदुरे भवतु भवतां कीर्तिश्च नारायणे ।। 

देवीमयी

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तव  च  का  किल  न स्तुतिरम्बिके
            सकलशब्दमयी किल ते तनुः

श्री रामचंद्र जी


आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनं
वैदेहीहरणं   जटायुमरणं   सुग्रीव  संभाषणं
बालिनिग्रहणं   समुद्रतरणं  लङ्कापुरीदाहनम्
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननमेतद्धि    रामायण ।।

अभिषेक मंत्र


भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तथा कुण्डली के कई प्रकार के दोषों की शांति के लिए रुद्राभिषेक किया जाता है । 
कामना पूर्ती के लिए रुद्राभिषेक करने से पहले शिव वास भी देख लिया जाये तो अति उत्तम होता है ।
निष्काम भाव से करना हो तो कभी भी किया जा सकता है ।
'शिव' एवं 'रूद्र' ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं ।

बगलामुखी ध्यान -

शत्रु संहार के लिए या किसी गुप्त या प्रत्यक्ष शत्रु के किये हुए प्रहार को निष्फल करके उसी पर वापस करने के प्रयोग के लिए माँ बगलामुखी बहुत प्रसिद्ध है 
माता को पीला रंग प्रिय है । शत्रु इनके सामने नहीं टिक सकते । माता बगलामुखी के मंत्रो का जाप करने के लिए साधक को कड़े नियमो का पालन करना अति आवश्यक है । वैसे तो हर मंत्र का अपना नियम पालन होना जरुरी है क्योंकि नियम से न चलने के कारण मंत्र का दुष्प्रभाव भी सामने आता है । लेकिन बगलामुखी माँ पीताम्बरा के नियम

भगवन शंकर के लिए तर्पण –


ॐ भवं देवं तर्पयामि ।।      
शर्वं देवं तर्पयामि ।।   
ईशानं देवं तर्पयामि ।।
पशुपतिं देवं तर्पयामि ।।      
उग्रं देवं तर्पयामि ।।   
रुद्रं देवं तर्पयामि ।।
भीमं देवं तर्पयामि ।। 
महान्तं देवं तर्पयामि ।।     
भवस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।           
शर्वस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।
ईशानस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।    
पशुपतेर्देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।
उग्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।           
रुद्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।
भीमस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।   
महतो देवस्य पत्नीं तर्पयामि ।।  


संक्षिप्त कुशकंडिका एवं हवन पद्धति



आचार्य वरण –
आचार्यस्तु यथा स्वर्गे शक्रादीनां बृहस्पतिः
तथात्वं मम यज्ञेस्मिन् आचार्यो भव सुव्रत ।।

ब्रह्मा वरण –
यथा चतुर्मुखो ब्रह्मा वेदशास्त्र विशारदः
तथात्वं मम यज्ञेस्मिन् ब्रह्माभव द्विजोत्तमः ।।

(रक्षा विधान पीली सरसों अथवा अक्षत से)

ॐ आवाह्यामि तत्कुण्डं विश्वकर्मविनिर्मितं ।
शरीरं यच्च ते दिव्यमग्न्यधिष्ठान मद्भुतं ।

ये च कुण्डे स्थिता देवाः कुण्डान्गे याश्चदेवताः ।
ऋद्धिं यच्छन्तु ते सर्वे यज्ञसिद्धिं मुदान्विता ।।
हे कुण्ड तव निर्माण रचितं विश्वकर्मणा ।
अस्माकं वाञ्छितां सिद्धिं यज्ञसिद्धिं ददातु भोः ।।

                            

विश्वकर्मन्हविषा वर्द्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोकरवद्धय्म ।
तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरमुग्रो विहव्योयथासत् ।।
उपयामगृहीतो सीन्द्राय त्वा विश्वकर्मण एषते
योनिरिन्द्राय त्वा विश्वकर्मणे ।। ॐ विश्वकर्मणे नमः ।
अज्ञानाञ्ज्ञानतो वापि दोषास्युः खननोद्भवाः ।
नाशाय त्वंहि तान्सर्वान्विश्वकर्मन्नमोस्तुते ।।

मेखला पूजन
प्रथम श्वेत मेखला विष्णुं ध्यानं
मध्य रक्त मेखला ब्रह्मा ध्यानं
बाह्य तृतीय कृष्ण वर्ण मेखला शिवं ध्यानं

योनि पूजा
ॐ जगदुत्पत्ति हेतुकायै मनोभवयुतायै योन्यै नमः ।
तत्र प्राक् दिशायां गोरीं पूजयेत ।
ॐ अम्बेअम्बिकेअम्बालिके नमानयतिकश्चन ।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीं ।। 
ॐ क्षत्रस्य योनिरसि क्षत्रस्यनाभिरसि मा त्वाहि ् सीन्मामा हि ् सीः ।।
योनिरित्येव विख्याता जगदुत्पत्ति हेतुका ।
मनोभवयुता देवी रतिसोख्य प्रदायिनी
मोहयित्री सुराणां च जगद्धात्री नमोस्तुते ।।

नवग्रहमण्डल


ॐ आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः

 ब्रह्मा मुरारिस्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च
गुरुश्च  शुक्रः  शनिराहुकेतवः  सर्वे ग्रहः शान्तिकरा भवन्तु ।।

केतु –


ॐ केतुं कृण्वन्निति मन्त्रस्य मधुच्छन्द ऋषिः गायत्री छन्दः केतुर्देवता केतु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ब्रह्मणः कुलसंभूतम् विष्णुलोकभयावहम्
शिखिनन्तु महाकायं केतुमावाहयाम्यहम् ।।

राहु –


ॐ कया नश्चित्रेति मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः गायत्री छन्दः राहुर्देवता राहु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

सिंहिकासुत राहवे नमः

चक्रेण छिन्नमूर्द्धानं विष्णुना च निरीक्षितम्
सैंहिकेयं    महाकायं   राहुमावाहयाम्यहम् ।।

शनि –


ॐ शन्नो देवीति मन्त्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषिः गायत्रीछन्दः आपो देवता शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

सूर्यपुत्र शनेश्चराय नमः
  
प्रदीप्तवह्निवर्णाभं नीलाञ्जनसमप्रभम्
छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ।।

शुक्र –


ॐ अन्नात्परिस्रुतेति मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः शुक्रो देवता शुक्र प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

दैत्याचार्य भार्गवाय नमः
  
प्रविश्य जठरे शम्भोर्निषक्रान्तः पुनरेव यः
आचार्यमसुरादीनां    शुक्रमावाहयाम्यहम् ।।

बृहस्पति –


ॐ बृहस्पतेति मन्त्रस्य गृत्समद ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः ब्रह्मा देवता बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ॐ देवाचार्य बृहस्पतये नमः

गुरुश्रेष्ठं गिरः पुत्रं देवानां च पुरोहितम्
शक्रस्य मन्त्रिणं श्रेष्ठं गुरुमावाहयाम्यहम् ।।

बुध –


ॐ उद्बुध्यस्वेति मन्त्रस्य परमेष्ठी प्रजापति ऋषिः त्रिष्टुप्छन्दः बुधो देवता बुध प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

चन्द्रपुत्र बुद्धाय नमः

बुधं बुद्धिप्रदातारं सोमवंशविवर्धनम्
यजमानहितार्थाय बुधमावाहयाम्यहम् ।।

मङ्गल –


ॐ अग्निर्मूर्द्धेति मन्त्रस्य विरूपाङ्गिरस ऋषिः अग्निर्देवता गायत्री छन्दः भौम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ॐ मङ्गलाय नमः
ऋणहर्तवे नमः
धनप्रदाय नमः

चन्द्र –


ॐ इमन्देवेतिमन्त्रस्य गौतम ऋषिः सोमो देवता विराट छन्दः सोमं प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ॐ चन्द्रमस्यै नमः, अत्रिपुत्राय नमः, सागरोद्भवाय नमः

हिमरश्मिं निशानाथं तारिकापतिमुत्तमम्
ओषधीनां च राजानं चन्द्रमावाहयाम्यहम् ।।