Sunday, December 20, 2015

विष्णु पूजन




केशवं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम्
रुक्मिणिसहितं देवं विष्णुमावाहयाम्यहम् ।।


ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधानिदधे पदम् समूढ़मस्यपा ँसुरे विष्णवे नमः।।

देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहाकारकम्
चतुर्भुजं रमानाथं विष्णुमावाहयाम्यहम् ।।    

सशंख चक्रं स किरीट कुण्डलं सपीत वस्त्रं सरसीरुहिक्षणं
साहार वक्षस्थल कोस्तुभं श्रियं नमामि विष्णुं शिरसां चतुर्भुजं ।।

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिर्भिध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरणं सर्वलोकैकनाथं ।।

नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः विष्णु प्रचोदयात् ।।

उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शङ्खं गदां पङ्कजं
चक्रं विभ्रतिमिन्दिरावसुमती संशोभिपार्श्वद्वयम्
कोटी राङ्गदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं कोस्तुभै-
-र्दीप्तं विश्वधरं स्ववक्षसि लसच्छ्रीवत्सचिन्हम् भजे ।।

आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्
सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रति गच्छति ।।



कायेन वाचा मन्सेन्द्रिर्यैर्वा बुद्ध्यात्मना वाप्रकृतिस्वभावात्
करोति यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयेत्तत् ।।


ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्युरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।।
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श्री हरि भगवान के रहस्य

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के देवता माने जाते है । पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु के दो चेहरो के बारे में बात कही जाती है। एक तरफ, वह शांत सुखद और कोमल रूप में दिखाई देते है। एक तरफ जहाँ वह शेषनाग (सांपों के राजा) पर एक आरामदायक आसन में बैठे है और वंही दूसरी तरफ उनका चेहरा कुछ अलग प्रतीत होता है।

 भगवान विष्णु के बारे में शास्त्रों में लिखा है-
 "शान्ताकारं भुजगशयनं"

भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर पहली बार हर किसी के मन में आता है कि एक सांप के राजा के ऊपर बैठे इतना शांत कैसे हो सकते है ? तत्काल जवाब आता है कि वह भगवान है और उनके के लिए यह सब संभव है|

1.) शेषनाग पर लेटे हुए भगवान विष्णु का राज क्या है?

देखा जाये तो इंसान के जीवन का हर पल कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से संबंधित है। इनसब मे सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में शामिल परिवार, सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी है , इन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बहुत प्रयासो के साथ कई समस्याओं से गुजरना होता है जोकी शेषनाग की तरह बहुत डरावने होते है और चिंता पैदा करते है| भगवान विष्णु का शांत चेहरा हमें प्रेरित करता है की कठिन समय में शांती और धैर्य के साथ रहना चाहिए और समस्याओं के प्रति शांत दृष्टिकोण ही हमें सफलता हांसिल करवा सकता है| यही कारण है भगवान विष्णु सांपो के राजा के ऊपर लेटते हुए भी अत्तयंत शांत व् मुस्कुराते हुए प्रतीत होते हैं|


2.) आखिर क्यों भगवान विष्णु का नाम नारायणऔर हरि है ?

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के प्रधान भक्त नारद ने भगवान विष्णु का नाम जपने के लिए नारायण शब्द का प्रयोग किया, उसी समय से भगवान विष्णु के सभी नामों में जैसे अनन्तनरायण, लक्ष्मीनारायण, शेषनारायण इन सभी में विष्णु का नाम नारायण जोड़कर लिया जाता है।

कई लोगों को मानना है कि भगवान विष्णु को नारायण के रूप में जाना जाता है लेकिन बहुत कुछ इसके पीछे के रहस्य को भी जानते हैं। एक प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार, जल भगवान विष्णु के पैरों से पैदा हुआ था और इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया की भगवान विष्णु के पैर से बाहर आई गंगा नदी का नाम विष्णुपदोदकी के नाम से जाना जाता है|

इसके अलावा, जल नीरया नर नाम से जाना जाता है और भगवान विष्णु भी पानी में रहते हैं, इसलिए, ‘ नर से उनका नाम नारायण बना, इसका मतलब है पानी के अंदर रहने वाले भगवान।

भगवान विष्णु को हरि नाम से  भी जाना जाता है हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, हरि का मतलब हरने वाला या चुराने वाला इसलिए कहा जाता है हरि हरति पापणि”  इसका मतलब है हरि भगवान है जो जीवन से पाप और समस्याओं को  समाप्त करते हैं भगवान हमेशा माया के चंगुल से वातानुकूलित आत्मा का उद्धार करने के लिए  योजना बनाते रहते हैं ।

3.) आखिर क्यों है भगवान विष्णु के चार हाथ ?

प्राचीनकाल में जब भगवान शंकर के मन में सृष्टी रचने का उपाए आया तो सबसे पहले उन्होनें अपनी अंतरदृस्टि से भगवान विष्णु को पैदा किया और उनको चार हाथ दिए जो उनकी शक्तिशाली और सब व्यापक प्रकृति का संकेत देते है उनके सामने के दो हाथ भौतिक अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करते है, पीठ पर दो हाथ आध्यात्मिक दुनिया में अपनी उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं । विष्णु के चार हाथ अंतरिक्ष की चारों दिशाओं पर प्रभुत्व व्यक्त करते हैं और मानव जीवन के चार चरणों और चार आश्रमों के रूप का प्रतीक है :
1. ज्ञान के लिए खोज (ब्रह्मचर्य) 2. पारिवारिक जीवन (गृहस्थ) 
3. वन में वापसी (वानप्रस्थ) 4. संन्यास 

जय श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः 



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