Sunday, December 20, 2015

शिव ताण्डव स्तोत्र


जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
      गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
      चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी
      विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
      किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर
      स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
      क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा
      कदंबकुंकुमद्रव    प्रलिप्तदिग्वधूमुखे
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
      मनोविनोदद्भुतं     बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
      प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः
      श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा  
          निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
      महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
      द्धनंजयाहुतिकृत   प्रचंडपंचसायके
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
      प्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर
      त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः
      कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा
      वलम्बि कंठकंदली रुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
      गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी
      रसप्रवाह माधुरी विजृंभणामधुव्रतम्‌
स्मरांतकं पुरांतकं भवांतकं मखांतकं
      गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस
      द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्कराल भाल हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगल
      ध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो
      र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
      समप्रवर्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌
      विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
      शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
      पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं
      विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१

पूजाऽवसानसमये दशवक्त्रगीतं
      यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
      लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१


॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

No comments:

Post a Comment