ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्तिनः पूषा विश्ववेदाः
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ पयः
पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो
दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।।
अग्निर्देवता
वातो देवता सूर्योदेवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रादेवतादित्या देवता मरुतो
देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता
ॐ द्योः
शान्तिरन्तरिक्ष् ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः
शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्मशान्तिः सर्व ँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा
शान्तिरेधि ।। सुशान्तिर्भवतु ।।
ॐ विश्वानि
देवसवितर्दुरितानि परासुव यद्भद्रं तन्न आसुव ।।
इमा रुद्राय
तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहेमतीः । यथा शमसद्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे
अस्मिन्ननातुरम् ।
एतं ते देव सवितर्यज्ञं प्राहुर्बृहस्पतये ब्रह्मणे
तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव ।
मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिं यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञ ँ समिमं दधातु ।।
विश्वेदेवा
स इह मादयंतामो २ प्रतिष्ठ । एष वै प्रतिष्ठानां यज्ञो यत्रैतेन यज्ञेन यजन्ते सर्वमेव
प्रतिष्ठितं भवति ।।
ॐ
गणानांत्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति ँ हवामहे निधीनांत्वा निधिपति ँ
हवामहे वसो मम ।। आहमजानिगर्भधमात्वंजासि गर्भधम् ।।
नमो गणेभ्यो
गणपतिभ्यश्र्चवो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्र्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्स्पतिभ्यश्र्च वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमो नमः ।।
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आदरणीय पंडित जी,सादर नमन।इस सुंदर स्वस्तिवाचन को हमे उपलब्ध कराने के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद।आशा है कि आप आगे भी इस प्रकार की धार्मिक पोस्ट हमे उपलब्ध करवाते रहेंगे।धन्यवाद।
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