Sunday, December 20, 2015

वेदसार शिवस्तवः


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
      गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
      महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ।।।।


महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
      विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
      सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ।।।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
      गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
      भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ।।।।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
      महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
      प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।।।।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
      निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
      तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।।।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
      र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
      न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ।।।।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
      शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
      प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ।।।।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
      नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
      नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ।।।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
      महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
      त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ।।।।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे 
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
काशीपते करुणया जगदेतदेक-      
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ।। १० ।।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे 
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश 

लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन ।। ११ ।।

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