Friday, December 18, 2015

रक्षा विधान

पीली सरसों से रक्षा विधान

ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य नमस्कृत्य पितामहम् ।
विष्णुं रुद्रं श्रियं देवीं वन्दे भक्त्या सरस्वतीम् ।।
स्थानाधिपं  नमस्कृत्य  ग्रहनाथं  निशाकरम्
धरणीगर्भसंभूतं     शशिपुत्रं     बृहस्पतिम् ।।
दैत्याचार्यं   नमस्कृत्य   सूर्यपुत्रं   महाग्रहम्
राहुं   केतुं   नमस्कृत्य  यज्ञारम्भे  विशेषतः ।।
शक्राद्या  देवताः  सर्वाः मुनीन्श्चैव तपोधनान्
गर्गं  मुनिं   नमस्कृत्य  नारदं  मुनिसत्तमम् ।।
वशिष्ठं  मुनिशार्दूलं  विश्वामित्रं  च  गोभिलम्
व्यासं   मुनिं   नमस्कृत्य  सर्वशास्त्रविशारदम् ।।
विद्याधिका  ये  मुनय  आचार्याश्च  तपोधनाः
तान्  सर्वान्  प्रणमाम्येवम् यज्ञरक्षाकरान् सदा ।। 

अब निम्नलिखित मन्त्रों से दसो दिशाओं में अक्षत तथा पीली सरसों छोड़ें
पूर्वे  रक्षन्तु  वाराह  आग्नेयां गरुडध्वजः
दक्षिणे  पद्मनाभस्तु  नैऋत्यां  मधुसूदनः ।।
पश्चिमे  पातु  गोविन्दो  वायव्यां तु जनार्दनः
उत्तरे  श्रीपती  रक्षेदैशान्यां  तु  महेश्वरः ।।
ऊर्ध्वं  गोवर्धनो  रक्षेद्  ह्यधोऽनन्तस्तथैव  च
एवं  दश  दिशो  रक्षेद्  वासुदेवो  जनार्दनः ।।
रक्षाहीनं  तु  यत्स्थानं  रक्षत्वीशो  महाद्रिधृक्
यदत्र  संस्थितं  भूतं  स्थानमाश्रित्य  सर्वदा ।।
स्थानं  त्यक्त्वा  तु  तत्सर्वं  यत्रस्थं  तत्र  गच्छतु
अपक्रामन्तु  ते  भूता  ये  भूता  भूमिसंस्थिताः ।।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया
अपक्रामन्तु  भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशः ।।
सर्वेषामविरोधेन    पूजाकर्म     समारभे ।।  


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1 comment:

  1. For the welfare of mankind not for our own selfish need.

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