Sunday, April 5, 2020

अधिदेवता, प्रत्यधि देवता, पञ्चलोकपाल देवता

अधिदेवता
ईश्वर ( सूर्य के दायें भाग मे )
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

उमा  ( चन्द्रमा के दायें भाग मे )
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् इष्णन्निषाणामुं म ईशाण सर्वलोकं म ईशाण    


स्कन्द ( मङ्गल के दायें भाग मे )
यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्
शयेनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन् ।।

विष्णु  ( बुध के दायें भाग मे )
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्युरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ।।

ब्रह्मा  ( बृहस्पति के दायें भाग मे )
ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुची वेन आवः
सबुध्न्या  उपमा  अस्य  विष्ठाः सतश्चयोनिमसतश्चविवः ।।

इन्द्र ( शुक्र के दायें भाग मे )
ॐ सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्
जहिशत्रूँ२रप मृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः ।।

यम  ( शनि के दायें भाग मे )
ॐ यमाय त्वाऽङ्गिरस्वते पितृमते स्वाहा
स्वाहाय घर्माय  स्वाहा घर्मः  पित्रे स्वाहा ।।

काल ( राहु के दायें भाग मे )
ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वा क्षित्या उन्नयामि
समापो अद्भिरग्मत समोषधीभिरोषधीः ।।

चित्रगुप्त ( केतु के दायें भाग मे )
ॐ चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय


प्रत्यधिदेवता
अग्नि ( सूर्य के बायें भाग मे )
ॐ अग्निन्दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुपब्रुवे देवां २ ।। आसादयादिह ।

जल ( चन्द्रमा के बायें भाग मे )
ॐ आपोहिष्ट्ठामयोभुवस्तानऽउर्ज्जेदधातनमहेरणायचक्षसे ।।

पृथ्वी ( मङ्गल के बायें भाग मे )
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म सप्रथाः

विष्णु ( बुध के बायें भाग मे )
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधानिदधे पदम् समूढ़मस्यपा ँसुरे विष्णवे नमः।।

इन्द्र ( बृहस्पति के बायें भाग मे )
ॐ इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः
देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ।।

इन्द्राणी ( शुक्र के बायें भाग मे )
ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः पूषाऽसि घर्माय दीष्व ।।

प्रजापति ( शनि के बायें भाग मे )
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वय ँ स्याम पतयो रयीणाम् ।।

सर्प ( राहु के बायें भाग मे )
ॐ नमोऽस्तुसर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु
ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ।।

ब्रह्मा ( केतु के बायें भाग मे )
ॐ ब्रह्म यज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुची वेन आवः
सबुध्न्या  उपमा  अस्य  विष्ठाः सतश्चयोनिमसतश्चविवः ।।





पञ्चलोकपाल पूजा
गणेश जी
ॐ गणानांत्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणांत्वा प्रियपति ँ हवामहे निधीनांत्वा निधिपति ँ हवामहे वसो मम ।। आहमजानिगर्भधमात्वंजासि गर्भधम् ।। (यजु.२३.१९.)


दुर्गा देवी
ॐ अम्बेअम्बिकेअम्बालिके नमानयतिकश्चन ।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीं ।। 


वायु
ॐ आ नो नियुद्भिः शतनीभिरध्वर ँ सहस्त्रिणीभिरूप याहि यज्ञम्
वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ।।
 

आकाश
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ।।



अश्विनी कुमार  
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती तया यज्ञं मिमिक्षतम्
उपयामग्रहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा ।।

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