गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। हो सकता है कि आप भी इन 14 प्रकार के लोगों में से कोई एक हों।
आओ जानते हैं कि इस चौपाई में ऐसे कौन-से 14 दुर्गुण बताए गए हैं
जिसमें से एक भी व्यक्ति के भीतर होने पर वह मृतक के समान माना जाता है।
जिसमें से एक भी व्यक्ति के भीतर होने पर वह मृतक के समान माना जाता है।
"कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥"
पहला मृतक व्यक्ति वाममार्गी ( कौल) : इसे उस दौर में कौल कहा जाता था। कौल मार्ग अर्थात तांत्रिकों का मार्ग। कापालिक संप्रदाय के लोग भी इससे जुड़े हैं। जादू, तंत्र, मंत्र और टोने टोटको में विश्वास करने वाले भी कौल हो सकते हैं। हालांकि इसके अर्थ को और भी विस्तृत किया जा सकता है। आजकल वामपंथी विचारधारा के लोग जो कर रहे हैं वह कौल ही है।
कौल या वाम का अर्थ यह कि जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोज ले और जो नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार का घोर विरोधी हो, वह वाममार्गी है। ऐसा काम करने वाले लोग समाज को दूषित ही करते हैं। यह लोग उस मुर्दे के समान है जिसके संपर्क में आने पर कोई भी मुर्दा बन जाता है। वामपंथ देश, समाज और धर्म के लिए घातक है।
दूसरा मृतक व्यक्ति कामुक : चौपाई में कामबश लिखा है। काम का अर्थ भोग और संभोग दोनों ही होता है। बहुत से लोगों के लिए उनकी जिंदगी में सेक्स ही महत्वपूर्ण होता है। कहते हैं अत्यंत भोगी, विलासी और कामवासना में ही लिप्त रहने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे मौत के मुंह में स्वत: ही चला जाता है।
ऐसे व्यक्ति वक्त के पहले ही वह बूढ़ा हो जाता है। उसे हर तरह के रोग या शोक घेर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति के मन की इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होती। वह कुतर्की भी होता है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
तीसरा मृतक व्यक्ति कृपण : चौपाई में कृपिन शब्द का उपयोग किया गया है जिसे हिन्दी में कृपण कहते हैं। कृपण को प्रचलित शब्द में कंजूस कह सकते हैं, लेकिन कृपण तो महाकंजूस होता है। चमड़ी चली जाए लेकिन दमड़ी नहीं देगा वाली कहावत को वह चरितार्थ करता है। ऐसे व्यक्ति द्वारा अर्जित धन का उपयोग न तो वह कर पाता है और न ही उसका परिवार।
अति कंजूस व्यक्ति को मृतक समान माना गया है। ऐसा व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य के लिए दान देने या उसमें हिस्सा लेने से बचता है।
चौथे तरह का मृतक व्यक्ति विमूढ़ : चौपाई में विमूढ़ा लिखा है। विमूढ़ को अंग्रेजी में कन्फ्यूज़्ड व्यक्ति कहते हैं। इसे भ्रमित बुद्धि का व्यक्ति भी कह सकते हैं। इसे गफलत में जीने वाला और अपने विचारों पर दृढ़ नहीं रहने वाला व्यक्ति भी कह सकते हैं।
कुल मिलकार ऐसा व्यक्ति मूढ़ और मूर्ख होता है। ऐसा व्यक्ति खुद कभी निर्णय नहीं लेता। उसकी जिंदगी के हर फैसले कोई दूसरा ही करता है। अब सोचीए हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित रहने वाले व्यक्ति को मृतक समान ही तो मानेंगे। ऐसे ही लोग ईश्वर को छोड़कर कथित बाबाओं और चमत्कार दिखाने वाले ढोंगी लोगों के यहां शरण लिए हुए होते हैं।
पांचवां मृतक व्यक्ति अति दरिद्र : इस दरिद्र शब्द का अर्थ गरीब या निर्धन नहीं होता है। यदि आपके घर में कचरा फैला, सामान अस्त-व्यस्त बिखरा हुआ है तो लोग कहते हैं कि क्या दरिद्रता फैला रखी है। दरिद्रता का संबंध गंदगी से भी हैं। स्वच्छता से दरिद्रता का नाश होता है। आप कितने ही गरीब हों, लेकिन स्वच्छ रहेंगे तो धनवान बनने के रास्ते खुलते जाएंगे।
दरिद्रता एक रोग के समान है। महात्मा गांधी ने दरिद्रों को नारायण कहकर सम्मानित किया और इस रोग को और बढ़ावा दिया। यदि हम जिस पर ध्यान देंगे, वही चीज ज्यादा विकसित होगी। दरिद्रा का सम्मान करने से दरिद्रता पोषित होती है।
गरीबों की गरीबी दूर करने के हर उपाय उस व्यक्ति, उसके समाज और उसकी सरकार को करना चाहिए। यदि समाज में कोई व्यक्ति दीनहीन, दुखी या दरिद्र है तो उसकी जिम्मेदारी सभी की बनती है। गरीबों को अमीर बनाने का लक्ष्य होना चाहिए और यह तभी होगा जबकि हम दरिद्रा से घृणा करने लगेंगे। दरिद्र से नहीं दरिद्रता से घृणा करना जरूरी है। बहुत से शायर या साहित्यकार या भक्त लोग फकीरी जीवन को सम्मान देते हैं। यही कारण रहा की हमारा देश अमीर होने के बावजूद दीनहीन बन गया।
दरिद्रता कई प्रकार की होती है, कोई धन से, कोई आत्मविश्वास से, कोई साहस से, कोई सम्मान से और कोई ज्ञान से दरिद्र होता है, लेकिन जिस व्यक्ति में यह सभी दुर्गुण विद्यमान है वह अति दरिद्र व्यक्ति माना गया है। ऐसा व्यक्ति मृतक समान है। ऐसे व्यक्ति की सहायता करने वाला पुण्य प्राप्त करता है।
छठा मृतक व्यक्ति अजसि : ब्रज मंडल में यश को जस कहा जाता है यह अजसि शब्द इसी से बना है। इस अपयश कहते हैं। अर्थात जिसके पास यश नहीं अपयश है वही। इसे उर्दू में बदनामी कह सकते हैं।
समाज में ऐसे कई व्यक्ति हैं जिनका घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर और राष्ट्र आदि किसी भी क्षेत्र में कोई सम्मान नहीं होता है या जिसने कभी सम्मान अर्जित ही नहीं किया, लेकिन यह बात अधूरी है। दरअसल ऐसे व्यक्ति जो विख्यात तो नहीं लेकिन कुख्यात जरूर है। किसी भी कारणवश वह बदनाम हो गया है।
बुराई से भी बुरी होती है बदनामी। समझदार व्यक्ति हर प्रकार का नुकसान उठाने के लिए तैयार रहता है बदनामी से बचने के लिए। बदनामी से सबकुछ नष्ट हो जाता है। बदनाम व्यक्ति भी मृतक व्यक्ति के समान होता है।
सातवां मृतक व्यक्ति अति बूढ़ा : अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। यदि आपका शरीर और बुद्धि दोनों ने ही काम करना बंद कर दिया है और फिर भी आप जिंदा हैं तो ऐसे जीने का क्या मतलब।
ऐसे अति बूढ़े व्यक्ति के बारे में उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं। उनमें से कुछ कहते हैं कि हम चाहते हैं कि उनको कष्टों से छुटकारा मिल जाए इसीलिए हम ऐसी कामना करते हैं। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार वे खुद ही इस तरह के बूढे व्यक्ति से छुटकारा पाना चाहते हैं जिसकी सेवा में वे दिनरात लगे हुए हैं। हो सकता है कि घर के कुछ सदस्य ऐसा नहीं सोचते हों। लेकिन क्या यह जिंदगी सही है?
आठवां मृतक व्यक्ति सदा रोगवश : घर में कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो किस न किसी रोग से हमेशा ग्रस्त ही रहता हो। गोलियों का ही सहारा हो। निरंतर रोगग्रस्त रहने वाले व्यक्ति को भी मृतक समान ही माना गया है।
ऐसे व्यक्ति का मन हमेशा विचलित रहता है।
नकारात्मकता उस पर हावी रहती है। हमेशा नकारात्मक सोचते रहने से भी उसके स्वस्थ होने में रुकावट पैदा हो जाती है। ऐसा व्यक्ति खुद ही मरने की सोचने लगता है जो कि गलत है।
इस तरह की सोच से वह जीवित होते हुए भी स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है। ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आहर में बदलाव करें, नियमित योग करें और नियमित ध्यान करें, तो निश्चित ही वह एक वर्ष में पूर्ण स्वस्थ हो सकता है।
नौवां मृतक व्यक्ति संतत क्रोधी : निरंतर क्रोध में रहने वाले व्यक्ति को तुलसीदासजी ने संतत क्रोधी कहा है। हर छोटी-बड़ी बात पर जिसे क्रोध आ जाए ऐसा व्यक्ति भी मृतक के समान ही है।
क्रोधी व्यक्ति के अपने मन और बुद्धि, दोनों ही पर नियंत्रण नहीं रहता है। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है। ऐसा व्यक्ति न खुद का भला कर पाता है और न परिवार का। उसका परिवार उससे हमेश त्रस्त ही रहता है। सभी उससे दूर रहना पसंद करते हैं।
दसवां मृतक व्यक्ति विष्णु विमुख : इसका अर्थ है भगवान विष्णु के प्रति प्रीति नहीं रखने वाला, अस्नेही या विरोधी। इसे ईश्वर विरोधी भी कहा गया है। ऐसे परमात्मा विरोधी व्यक्ति मृतक के समान है।
ऐसे अज्ञानी लोग मानते हैं कि कोई परमतत्व है ही नहीं। जब परमतत्व है ही नहीं तो यह संसार स्वयं ही चलायमान है। हम ही हमारे भाग्य के निर्माता है। हम ही संचार चला रहे हैं। हम जो करते हैं, वही होता है। अविद्या से ग्रस्त ऐसे ईश्वर विरोधी लोग मृतक के समान है जो बगैर किसी आधार और तर्क के ईश्वर को नहीं मानते हैं। उन्होंने ईश्वर के नहीं होने के कई कुतर्क एकत्रित कर लिए हैं।
ग्यारहवां मृतक व्यक्ति श्रुति और संत विरोधी : वेदों को श्रुति कहा गया है और स्मृतियां, रामायण, पुराण आदि स्मृति कहा गया है। श्रुति ही हिन्दु धर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ है। यहां तुलसीदासजी कह रहे हैं कि श्रुति विरोधी अर्थात वेद विरोधी इस धरती पर मृतक के समान है।
वेद का अर्थ होता है ज्ञान। इस वेद शब्द से ही वेदना शब्द बना है जिसे ज्ञान की पीड़ा माना जाता है। वेद का अर्थ जांचा परखा और जाना गया ज्ञान। वेद का अर्थ देखा और प्रत्यक्ष सुना गया ज्ञान। परमात्मा ने चार ऋषियों को यह ज्ञान सुनाया। ये चार ऋषि हैं:-अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
संत विरोधी : बहुत से संत आजकल स्वयंभू संत है। हिन्दू संत धारा में संत तो 13 अखाड़े और दसनामी संप्रदाय में दीक्षित होकर ही संत बनते हैं। ऐसे में संत की परिभाषा को समझना जरूरी है। संत का विरोधी भी इस धरती पर मृतक समान है।
स्वयंभू भी संत हो सकता है और दीक्षित व्यक्ति भी। जिसने वैदिक यम-नियमों का पालन किया, ध्यान, क्रिया और प्रणायाम का तप किया- वही संत होता है। इसके अलावा ज्ञान और भक्ति में डूबे हुए लोग भी संत होते हैं।
बारहवां मृतक व्यक्ति तनु पोषक : तनु पोषक का अर्थ खुद के तन और मन को ही पोषित करने वाला। खुद के स्वार्थ और आत्म संतुष्टि के लिए ही जिने वाला व्यक्ति। ऐसे व्यक्ति के मन में किसी भी अन्य के लिए कोई भाव या संवेदना नहीं होती। ऐसा व्यक्ति भी मृतक के समान ही होता है।
आपने देखे होंगे ऐसे बहुत से लोग जो खाने-पीने में, पहने-ओढ़ने में, घुमने-फिरने में हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले मुझे मिलें, बाकि किसी अन्य को मिले न मिले। ऐसे लोगों के मन में अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए कोई भावना नहीं होती है। यह सभी के लिए अनुपयोगी और मृतक समान हैं। ये खुद की कमाई को खुद भी ही खर्च तो करेंगे ही दूसरे की कामाई का भी खाने की आस रखेंगे।
तेरहवां मृतक व्यक्ति निंदक : हालांकि कबीर दासजी ने कहा है कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। लेकिन तुलसीदासजी यहां जिस निंदक व्यक्ति की बात कर रहे हैं वह जरा अलग किस्म का है।
कई ऐसे लोग होते हैं जिनका काम ही निंदा करना होता है। उन्हें इससे मतलब नहीं रहता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। उन्हें तो दूसरों में कमियां ही नजर आती है। कटु आलोचना करना ही उनका धर्म होता है। ऐसे लोग किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकते हैं। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे। ऐसे लोगों से बचकर ही रहें।
चौदहवां मृतक व्यक्ति अघ खानी : समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो पाककर्म के द्वारा धन या संपत्ति अर्जित करके अपना और परिवार का पालन-पोषण करते हैं। ऐसे व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।
ज्योतिष
(गणित, फलित, प्रश्न एवं सिद्धांत), कुण्डली मिलान, मुहूर्त्त, होरा, कर्मकाण्ड, श्री राम
कथा, श्रीमद्भागवत महापुराण
कथा, श्री शिवपुराण कथा, रुद्राभिषेक, सुन्दरकाण्ड, कालसर्प शांति, महामृत्युंजय जप, दुर्गा पाठ, बगुलामुखी अनुष्ठान, नवग्रह शांति, विवाह, गृह प्रवेश, हवन यज्ञ इत्यादि वैदिक नियमानुसार कराने के लिए संपर्क
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