Sunday, October 3, 2010

मंत्र माला

1) निर्वाण दीपैः किं तैल दानम् |चोरं गते वा किं सावधानं ||
वयो गते वा वनिता विलासः | पयो गते किं खलु सेतुबन्धः ||

दीपक बुझने के बाद उसमे तेल डालने से कोई लाभ नहीं, चोर के जाने के बाद सावधान होने का कोई लाभ नहीं, योवन जाने के बाद भोग विलास का कोई लाभ नहीं, जल के सूखने के बाद पुल बनाने का कोई फायदा नहीं ||


2) अनंतशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च |

यत्सारभूत तादुपसनीयम्, हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात ||

मानवजीवन सीमित है और कार्यों कि संख्या अधिक (असीमित), ज्ञान अनंत है और आयुअल्प, इसलिए व्यक्ति सभी कुछ सीखने-जानने के चक्कर में पड़ेगा तो उलझजायेगा |



3) य शास्त्रंविधिउत्सृज्य वर्तते कामकारत :!न स सिद्धिवाप्रोती न सुखं न परं गतिम् !!

जो मनुष्य शास्त्र विधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है , वह न सिद्धि को , न सुख शान्ति को और न परमगतिको ही प्राप्त होता है !इसलिए जिस पूजा पद्धिति और जिस मन्त्र का कोई शास्त्रीय आधार न हो न उनका जप स्वयं करना चाहिए न उनका प्रचारप्रसार करना चाहिए ! ऐसे मंत्रो से किसी को लाभ नहीं पहुँचता !


4) विप्र नीला मिमा वैन्या | द्या भूति भत्र नद्यय ||
अष्ट यत्रो न विद्यते | तत्र वासो न कारयेत ||

अर्थात: - विद्या, प्रभु, नीति, लाभ, मित्र, मान, वैद्य एवं न्याय.. ये आठ जहाँ न हो , वहां वास नहीं करना चाहिए ||

5) द्वाविमौ कपटकौ तीक्ष्णौ शरीरपरिशोषिणी।
यश्चाधनः कामयते पश्च कुप्यत्यनीश्वरः।।

हिंदी में भावार्थ-अल्पमात्रा
में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी
क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और कांटों के समान है।


6)येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्मः

ते मृत्युलोके भुवि भारभूतः, मनुष्यरूपे मृगाश्चरन्ति|

जिनके पास न विद्या है, न तप है , न दान है, न ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते हैं और मनुष्य के रूप में पशु के समान चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं)| -----भर्तृ
हरि