Sunday, December 20, 2015

बृहस्पति –


ॐ बृहस्पतेति मन्त्रस्य गृत्समद ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः ब्रह्मा देवता बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।

ॐ देवाचार्य बृहस्पतये नमः

गुरुश्रेष्ठं गिरः पुत्रं देवानां च पुरोहितम्
शक्रस्य मन्त्रिणं श्रेष्ठं गुरुमावाहयाम्यहम् ।।

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् दयुमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु
यद्दीदयच्छवस  ऋतप्रजात  तदस्मासु  द्रविणं  धेहि चित्रम्
उपयामगृहीतोऽसि  बृहस्पतये  त्वैष  ते योनिर्बृहस्पतये त्वा ।।

देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसंनिभम्
वन्द्यभूतं  त्रिलोकानां  गुरुमावाहयाम्यहम् ।।

ॐ भूर्भुवःस्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरस गोत्र पीतवर्ण भो गुरो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि

अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नः गुरुः प्रचोदयात


ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः १९००० 





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