ॐ बृहस्पतेति मन्त्रस्य गृत्समद ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः
ब्रह्मा देवता बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।
ॐ देवाचार्य बृहस्पतये नमः
गुरुश्रेष्ठं गिरः पुत्रं देवानां च पुरोहितम् ।
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् दयुमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवस
ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं
धेहि चित्रम् ।
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा ।।
देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसंनिभम् ।
वन्द्यभूतं
त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ।।
ॐ भूर्भुवःस्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरस गोत्र पीतवर्ण भो
गुरो ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये
नमः, बृहस्पतिमावाहयामि
स्थापयामि ।
अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नः गुरुः प्रचोदयात
।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः १९०००
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