भगवान श्री कृष्ण को हम कई रूपों में पूजते हैं उन्ही रूपों
में से एक है भगवान नागराजा का रूप | उत्तराखंड की पावन धरती पर समय-समय पर कई देवी-देवताओं ने
अवतार लिए हैं, यहाँ की सुन्दरता और पवित्रता पुराणों के युग से प्रसिद्ध
है | इसी कड़ी में
एक और कथा प्रचलित है जो कि भगवान श्री कृष्ण से जुडी हुई है और उत्तराखंड की
सुन्दरता और पवित्रता का व्याख्यान करती है |
वैसे तो सेम नागराजा से कई कहानियां जुडी हुई हैं किन्तु
यहाँ के स्थानीय निवासियों की कथा सच में इस स्थान की भव्यता की व्याखित करती है | माना जाता
है कि भगवान श्री कृष्ण एक समय यहाँ आये थे यहाँ की सुन्दरता और पवित्रता ने भगवान
श्री कृष्ण का मन मोह लिया, तब प्रभु श्री कृष्ण ने यहीं रहने का फैसला लिया पर भगवान
के पास यहाँ रहने के लिए जगह नहीं थी तो प्रभु श्री कृष्ण ने रमोला नाम के एक राजा
जो कि इस भूमी पर उस समय राज करते थे उनसे यहाँ रहने के लिए जगह मांगी ! राजा
रमोला जो कि श्री कृष्ण जी के बहनोई भी थे, भगवान को अधिक पसंद नहीं करते थे, तो उन्होंने
श्री कृष्ण जी को जगह देने से मना कर दिया | किन्तु भगवान श्री कृष्ण को यह भूमी इतनी पसंद आ गयी थी कि
उन्होंने बस यहीं रहने का प्रण कर लिया था | काफी मनाने के उपरांत राजा रमोला ने भगवान को ऐसी भूमी दी
जहाँ वह अपनी गायों और भैंसों को बंधता था | फिर भगवान श्री कृष्ण ने वहां एक मंदिर की स्थापना की जिसे
आज हम सेम नागराजा के रूप में जानते हैं | राजा रमोला इस बात से अनजान था की प्रभु स्वमं उसके पास आये
हैं | काफी समय तक
भगवान उसी स्थान पर रहे | एक दिन नागवंशी राजा के स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण आये और
उन्होंने नागवंशी राजा को अपने यहाँ होने के बारे में बताया | नागवंशी
राजा ने अपनी सेना के साथ प्रभु के दर्शन करने चाहे पर राजा रमोला ने उन्हें अपनी
भूमी पर आने से मना कर दिया जिस से नागवंशी राजा क्रोधित हो गये और उन्होंने राजा
रमोला पर आक्रमण करना चाहा | आक्रमण होने से पहले ही नागवंशी राजा ने राजा रमोला को प्रभु
के बारे में बताया फिर प्रभु श्री कृष्ण का रूप देखकर राजा रमोला को अपने कृत्य पर
लज्जा हुई | उसके बाद से प्रभु वहां पर नागवंशीयों के राजा नागराजा के
रूप में जाने जाने लगे | कुछ समाय पश्चात प्रभु ने वहां के मंदिर में सदैव के लिए एक
बड़े से पत्थर के रूप में विराजमान होना स्वीकार किया और परमधाम के लिए चले गये | उसी पत्थर
की आज भी नागराजा के रूप में पूजा करने का प्रावधान है | लोगों की
आस्था के अनुसार प्रभु का एक अंश अभी भी इसी पत्थर में स्थापित है और करोडो
व्यक्तियों की मनोकामना पूरी होते हुए यह बात सिद्ध भी होती है | मंदिर की भोगोलिक स्तिथि :जनपद टिहरी गढ़वाल की प्रताप नगर तहसील में समुद्र तल से
तकरीबन 7000 हजार फीट की
ऊंचाई पर भगवान श्रीकृष्ण के नागराजा स्वरूप का मंदिर है | मन्दिर का
सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और
भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर में प्रवेश के
बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला
है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ गंगू रमोला के
परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू
रमोला की पूजा की जाती हैकैसे पहुंचे :यात्री नयी टिहरी होते हुए या उत्तरकाशी होते हुए इए पवन
स्थल तक पहुँच सकते हैं | तलबला सेम तक यात्री वाहन द्वारा आ सकते हैं उसके बाद लगभग
ढाई किलोमीटर का पैदल सफ़र आपको मंदिर के प्रांगण तक पहुंचा देगा | पैदल मार्ग
सुन्दर वनों से ढाका हुआ है जिसमें आपको बांज, बुरांश, खर्सू, केदारपती के वृक्षों का मनमोहक दृश्य देखने को मिलेगा | विशेष :हर ३ साल में सेम मुखेम में एक भव्य मेले का आयोजन होता हैं
जो की मार्गशीर्ष माह की ११ गति को होता है | इस मेले के बहुत से धार्मिक महत्वा हैं इसलिए हजारों की
संख्या में इस दिन लोग यहाँ पर आते हैं भगवान नागराजा के दर्शन करने आते हैं | भगवान
नागराजा के मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा चढाने की भी परम्परा है जिसका की बहुत
महत्व है | आशा करता हूँ कि आपको इस स्थान के बारे में काफी कुछ पता चल
गया होगा | कई और कथाएँ भी इस स्थान के बारे में प्रचलित हैं पर सभी
कथाएँ भगवन कृष्ण से ही सम्बंधित हैं
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