Sunday, December 20, 2015

लिङ्गाष्टक स्तोत्रम्‌


ब्रह्म मुरारि सुरार्चितलिङ्गं निर्म्मल भासित शोभित लिङ्गम्‌
जन्मज दु:ख विनाशक लिङ्गं तत्‌ प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 1

देवमुनि प्रवरार्च्चित लिङ्गं कामदहं करूणाकर लिङ्गम्
रावणदर्प विनाशन लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 2


सर्व्वसुगंधि सुलेपित लिङ्गं बुद्धि विवर्द्धन कारण लिङ्गम्
सिद्धं सुरासुर वन्दित लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 3

कनक महामणि भूषित लिङ्गं फणिपति वेष्टित शोभित लिङ्गम्
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिङ्गं तत्‌ प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 4

कुंकुम चन्दन लेपित लिङ्गं पंकजहार सुशोभित लिङ्गम्
सच्चित्‌पाप विनाशन लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 5

देवगणार्च्चित सेवित लिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्
दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्‌ 6

अष्टदलोपरि वेष्टित लिङ्गं सर्व समुद्‌भव कारण लिङ्गम्‌
अष्ट दरिद्र विनाशित लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 7

सुरगुरू सुरवर पूजित लिङ्गं सुर वनपुष्प सदार्चित लिङ्गम्
रात्परं परमात्मक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम् 8

लिंगाष्टकमिदं पुण्यं य: पठच्छिव सन्निधो
शिवलोकमवाप्नोति शिवन सह मोदत।
॥इति श्रीलिंगाष्टक स्तोत्रम् सम्पुर्णम्॥


ॐ नम: शिवाय॥ 


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