ॐ उद्बुध्यस्वेति मन्त्रस्य परमेष्ठी प्रजापति ऋषिः
त्रिष्टुप्छन्दः बुधो देवता बुध प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।।
चन्द्रपुत्र बुद्धाय नमः
बुधं बुद्धिप्रदातारं सोमवंशविवर्धनम् ।
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स ँ
सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत
।।
प्रियङ्गुकलिकाभासं
रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं
बुधमावाहयाम्यहम् ।।
ॐ भूर्भुवःस्वः मगधदेशोद्भव आत्रेय गोत्र पीतवर्ण भो बुध ! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः, बुधमावाहयामि स्थापयामि ।
चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणिप्रियाय धीमहि तन्नः बुध
प्रचोदयात ।
ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ४०००
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