Friday, November 18, 2016

पिता सम्बन्धी चिंतन नवम भाव से या दशम भाव से ???



यह प्रश्न बहुत ही महत्व पूर्ण प्रश्न है कि पिता सम्बन्धी फलादेश नवम भाव से किया जाये या दशम भाव से,
बृहत् पराशर होरा-शास्त्र के २०वें अध्याय का चतुर्थ श्लोक है कि :
       भाग्य-स्थानात द्वितीये वा सूखे भौम समन्विते |
       भाग्येशे  नीच  राशिस्थे पिता  निर्धन एव हि ||
अर्थात् यदि भाग्य स्थान (नवम) से दुसरे या चतुर्थ स्थान में अर्थात् जन्म कुण्डली में दशम तथा बारहवें स्थान में नवमेश नीच राशी का होकर स्थित हो तो जातक का पिता निर्धन होता है | इस श्लोक से स्पष्ट पता चलता है कि पिता का स्थान कुण्डली का नवम स्थान है परन्तु उसी “बृहत् पराशर होराशास्त्र” के ११वें अध्याय में उल्लेख है कि :

       राज्यं च आकाश वृत्तिं च मानं चैव पितुस्तथा |
       प्रवासस्य ऋणास्यादि व्योम स्थानान्निरीक्षणम ||
अर्थात् राज्य, आकाश, आजीविका, मान-पिता-प्रवास, इन सब का निरीक्षण-परीक्षण दशम स्थान से करना चाहिए | शास्त्र में परस्पर विरोध होने कि स्थिति में अन्य ग्रंथो के मंतव्य पर विचार करना जरुरी हो जाता है |

आप कह सकते हैं कि माता का पति ही आपका पिता होता है | अतः पिता का स्थान माता (चतुर्थ) से सप्तम अर्थात् दशम युक्ति युक्त है | परन्तु दूसरे पक्ष से एक हेतु ये भी उपस्थित किया जा सकता है कि जब हमारा पुत्र हमारे भाव से पंचम निश्चित होता है तो हम जिस से पंचम हैं अर्थात् लग्न जिस भाव से पंचम है, उस नवम भाव का हमारे पिता से सम्बन्ध होना चाहिए | अतः हेतु से यह बात निर्णय योग्य नहीं , तो भी हेतु के अधर पर भी हम नवम भाव के पक्ष में हैं . क्योंकि उत्पत्ति सदा – सर्वदा पुत्र अथवा पुत्री रूप में होती है ; स्त्री अर्थात भार्या बाद में बनती है | अस्तु हम हेतु कि दृष्टि से अधिक न सोच कर नाड़ी ग्रंथो कि सम्मति इस विषय पर उपस्थित करते हैं | नाड़ी ग्रथ कहते हैं :
       “तवमेन तदीशेन स्वपिता जन्मभं विदु:” |
अर्थात नवम भाव तथा उसके स्वामी से पुत्र की कुण्डली से पिता की जन्म लग्न ज्ञात की जाती है | इस से स्पष्ट है कि नवम भाव ही पिता का भाव है |
नाड़ी ग्रन्थों में उल्लेख है कि “तृतीयं श्वसुरस्थानं”—अर्थात् तृतीय स्थान श्वसुर अर्थात पत्नी के पिता का है | पत्नी का भाव सप्तम होने से पत्नी से नवम अर्थात तृतीय स्थान श्वसुर हुआ इस प्रकार संबंधियों का निर्णय भी नवम भाव को पिता का भाव मान कर किया गया है |
       अष्टम स्थान निधन और कष्ट का स्थान है | यह मंतव्य तो सर्वथा सिद्ध ही है ; “व्ययेश दृष्टि राशो तु संतानारिष्ट्वान” अर्थात् सन्तान का अरिष्ट पंचम से अष्टम अर्थात् व्यय भाव के स्वामी से देखें | इसी प्रकार एक श्लोक है :
       लाभेशान्शेतत त्रिकोणेशे स्फुट योगम गते शनो |
       जननी  व्याकुलं  चेति    मातृवर्गेपि  उपद्रवं ||
अर्थात् एकादश भाव के स्वामी का नवांश राशि पर अथवा उस नवांश राशि से त्रिकोण राशि पर जब गोचर में शनि आवे तो माता को तथा मातृ-पक्ष को कष्ट होता है |
चतुर्थ भाव के स्वामी कि नवांश राशि पर अथवा उस नवांश राशि से त्रिकोण राशि पर जब गोचर में शनि आवे तो पिता को महान कष्ट हो | कारण यही है कि चतुर्थ स्थान नवम अर्थात् पिता का निधन स्थान है |
  
और एक जगह कहा गया है :- “कुग्रामवासी स्वपिता नीचान्शे भाग्य नायके” अर्थात नवमेश के नीच नवांश में स्थित होने पर पिता बुरे ग्राम में निवास करने वाला होता है | यहाँ भी पिता का विचार नवम भाव से ही किया गया है ||        

Providing Best Astrology Services by Best Astrologers in Patiala, Chandigarh.
Best Pooja Path Service according to Vedic Rituals.
Contact for Marriage Fere and any type of Poojan Hawan etc.
Providing Bhagwat Katha Service and Shiv Puran Katha Service also.


4 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी

    ReplyDelete
  2. आपके ब्लॉग में संस्कृत वाक्यों में शुद्धता दिखी जो जल्दी नही मिल पाती।। बहुत अच्छे

    ReplyDelete